Kurg, Scotland of India

भारत का स्कॉटलैंड कुर्ग

यह कर्नाटक का एक पहाड़ी जिला है चारों तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ है, कुर्ग जिला जिसका मुख्यालय मड़ीकेरी है वह बेहद खूबसूरत है अंग्रेज इसे भारत का स्कॉटलैंड कहते थे क्योंकि इसकी आबोहवा और इसकी खूबसूरती ब्रिटेन के स्कॉटलैंड के जैसी है यहां आप को खूबसूरत पहाड़ सैकड़ों झरने बड़े-बड़े कॉफी प्लांटेशन ढेर सारे मसालों के बागान तमाम छोटी छोटी प्राकृतिक ना लें हर तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आएगी

जब दलाई लामा भारत आए थे तब उन्होंने मेडीकेरी में भी एक विशाल बौद्ध मंदिर बनवाया है जहां की शांति और जहां का ध्यान आपको असीम ऊर्जा से भर देगा

कुर्ग यानी कोडागु जिला विश्व प्रसिद्ध कोडावा जनजातियों का मूल निवास है।

कोडावा यानी कुर्गी जनजातियों ने ही टीपू सुल्तान का जमके प्रतिकार किया था और टीपू सुल्तान के द्वारा हिंदुओं पर किए जा रहे अत्याचार के खिलाफ बगावत किया था । कुर्ग में टीपू सुल्तान ने दिवाली के दिन कई हजार हिंदुओं को मारा था इसीलिए आज भी कुर्ग के बहुत से गांव में दीपावली नहीं मनाई जाती।

कोडावा लोग जंगली सूअर बहुत चाव से खाते हैं। पूरे कुर्ग में जगह-जगह आपको ऐसे रेस्टोरेंट्स मिलेंगे जहां पर बड़े-बड़े बोर्ड लगे होंगे यहां बढ़िया पोर्क मिलता है।

कोडावा समुदाय भारत में मात्र डेढ़ लाख है लेकिन खेल, सेना, फिल्म सभी क्षेत्र में कोडावा लोगों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।

भारतीय सेना में बहुत भारी संख्या में कोडावा लोग बड़े-बड़े पदों पर हैं।

भारत के पहले फील्ड मार्शल जनरल करिअप्पा कोडवा थे।

कुछ प्रसिद्ध कोडावा लोगो के नाम हैं।

फील्ड मार्शल जनरल के एम करिअप्पा, जनरल केएस थिमैया, लेफ्टिनेंट जनरल सीवी मुथम्मा, एमपी गणेश, बीपी गोविंदा, लेफ्टिनेंट जनरल बीसी नंदा, जनरल के एस अय्यप्पा, अश्विनी नाचप्पा, रीथ अब्राहम, एमपी गणेश, रोहन बोपन्ना, जोशना चिनप्पा।

मिलिट्री क्रॉस विजेता ब्रिगेडियर के.सी. गणपति, महावीर चक्र विजेता (मरणोपरांत) स्क्वाड्रन लीडर अजामादा वी. देवैय्या, पहली पहिला आईएफएस अफसर सी.बी. मुथम्मा

कोडावा करीब 2 हजार साल पहले से कोडगु में बसे हुए हैं और इनकी पहली दर्ज उपस्थिति 1174 में होयसल राजवंश के दौरान पाई गई।

कोडगु पहले एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था, जिसमें 1830 तक हलेरी (लिंगायत) राजाओं ने शासन किया। इसके बांद 1947 तक यहां अंग्रेजों का राज रहा। इसके बाद इसके ‘सी’ राज्य घोषित होने पर सीएम पूनाचा यहां के पहले और आखिरी मुख्यमंत्री बने। 1 नवंबर 1956 को यह कर्नाटक राज्य में शामिल हो गया।

कोडावा एकमात्र ऐसा समुदाय है जिसमें वंशावली आधारित कुल प्रणाली हैं। इनका एक पवित्र पाठ पटोले पलाम भी है, जो एक विशिष्ट संस्कृति का रेकॉर्ड है और 19वीं शताब्दी के आखिर में नदिकेरियंदा चिनप्पा द्वारा संकलित किया गया।’

कोडावा लोग बड़े स्वाभिमानी और परिश्रमी होते हैं। परंपरागत रूप से ये लोग धान के खेतों में काम किया करते थे। उनके इस क्षेत्र में हजारों साल से रहने का प्रमाण मिलता है।

कोडावा लोगों को हथियार रखने के लिए किसी भी लाइसेंस की जरूरत नहीं है । सरकार ने इन्हें हथियार रखने की छूट प्रदान की है।

कोडावा लोगों में हथियार साथ में रखना, जरूरत पड़े तो बहादुरी से लड़ना उनके खून में है। अपनी अलग पहचान के लिए कई बार ये लोग कुर्ग को कर्नाटक से अलग राज्य का दर्जा देने की मांग भी कर चुके हैं। दरअसल देश आजाद होने के बाद जो 27 राज्य बने उसमें कुर्ग अलग राज्य था। पर 1956 में इसे कर्नाटक में मिला दिया गया। इस क्षेत्र की स्थानीय भाषा कोडावा है जो कन्नड़ से अलग है।

कोडावा लोगो मे चचेरे, ममेरे भाई बहनों के बीच विवाह संबंध होता है।

कोडावा में लोगो में विवाह की रस्म बिना किसी ब्राह्मण पुजारी के संपन्न कराई जाती है। यहां चचेरे, ममेरे भाई बहनों के बीच विवाह संबंध हो सकते हैं। कुर्ग के लोग हर साल 3 सितंबर को कालीपोल्डु उत्सव मनाते हैं। यह हथियारों की पूजा का उत्सव है। कुर्ग की ज्यादातर आबादी हिंदू है, पर टीपू सुल्तान के समय बड़ी संख्या में लोग मुसलमान भी बने थे।

कुर्ग के बहादुर राजा राजेंद्रलिंगाराजा और उनकी पत्नी के समाधि मुस्लिम आतताइयों  के डर से इस तरह से बनाया गया है ताकि दूर पहाड़ी पर बना यह समाधी  नीचे से कोई मजार या कोई इस्लामिक निर्माण लगे ताकि मुस्लिम आतताई इसे तोड़ ना सके, दूर से देखने में आपको यह एक इस्लामिक संरचना नजर आएगी लेकिन अंदर शंकर भगवान की मूर्ति रखी है।

कोडागु क्षेत्र पर कब्जा करने की कोशिश टीपू के पिता हैदर अली भी लगातार किया करते थे क्योंकि मंगलोर बंदरगाह का रास्ता वहां से होकर जाता था।

छापामार युद्ध में कुशल वीर लड़ाका कोडावा लोगों ने टीपू की भी कई कोशिशें विफल कर दी थीं. उसके सैनिकों को वे बार-बार मैसूर तक खदेड़ आते थे. आखिरकार टीपू ने कूटनीति का सहारा लेकर कोडावा लोगों की तरफ बहाने से दोस्ती का हाथ बढ़ाया और कावेरी के उद्गम स्थल बागमंडल के पास अचानक हमला करके निहत्थे आए हजारों कोडावा छापामारों को पकड़ ले गया और यातनाएं दे कर उनसे इस्लाम कबूल करवाया. उस छल को याद करते हुए आज भी कोडागु में लोकगीत और दंतकथाएं चलती हैं.

खेल जगत की कई बड़ी प्रतिभा कुर्ग से- कुर्ग ने खेल जगत को भी बड़ी हस्तियां दी हैं। कुर्ग से हॉकी खेलने वाले 10 से ज्यादा ओलंपियन हुए हैं। वहीं एथलेटिक्स में भी कुर्ग का बड़ा योगदान है। अश्विनी नचप्पा, रोहन बोपन्ना जैसी खेल जगत की हस्तियां कुर्ग से हुई हैं।

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