Prof. Yash Pal

भारत के जिन दो बड़े वैज्ञानिकों ने बच्चों के साथ सबसे ज्यादा इंटरेक्ट किया हैं उनमें पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और प्रो यशपाल ही मेरे जहन में आते हैं। प्रो यशपाल को मैंने सबसे पहले तब नोटिस किया था जब यह लंबे बालोंवाला किसी कलाकार सा लगनेवाला शख्स दूरदर्शन पर टर्निंग प्वाइंट नाम का धारावाहिक प्रस्तुत करता था। यह उनकी विज्ञान में बच्चों की रूचि विकसित करने की मुहिम का हिस्सा था।
प्रो यशपाल की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह विज्ञान जैसे दुरूह विषय को सरल भाषा में बच्चों को समझाते थे। प्रोफेसर यशपाल मानते थे कि प्रश्न करना मनुष्य होने का प्रमाण था इसलिए वे शिक्षकों से कहा करते थे कि बच्चों का पूछा कोई भी प्रश्न पाठ्यक्रम से बाहर नहीं है। उनको सबसे ज्यादा खुशी इस बात से मिलती थी कि लोग उनसे सवाल करें और उन्होंने इसके लिए अपने फ़ोन, ई-मेल सबके लिए खुले रखे थे। कोई भी उनको सवाल पूछ सकता था और वे सभी को बहुत प्यार से जवाब देते थे, चाहे वो सवाल कितना ही बेतुका क्यों न हो। वे पूरे इन्वॉल्व होकर लोगों के सवालों के जवाब दिया करते थे।उन्होंने कई किताबें भी लिखी थीं।
जीवन यात्रा
26 नवंबर 1926 को झांग (वर्तमान पाकिस्तान) जन्मे प्रोफेसर यशपाल ने अपने करियर की शुरुआत टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च से की थी। 1973 में सरकार ने उन्हें स्पेस एप्लीकेशन सेंटर का पहला डायरेक्टर नियुक्त किया था। यशपाल उन लोगों में शामिल थें, जिन्हे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का जानकर कहा जाता है। उनको कॉस्मिक किरणों पर गहरे अध्ययन के लिए भी जाना जाता है।
शिक्षा में सुधार के उपाय बताए
1993 में बच्चों की शिक्षा के बारे में सुझाव देने के लिए भारत सरकार ने प्रो यशपाल की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई, जिसे यशपाल कमेटी का नाम दिया गया। प्रोफेसर यशपाल ने ही पहली बार बच्चों पर बस्ते के बढ़ते बोझ पर सरकार का ध्यान केंद्रित किया। वे जब रिपोर्ट तैयार कर रहे थे तो पूछते थे कि ये मैं लिख रहा हूं और ये बात ठीक है या नहीं। यशपाल कमेटी ने लर्निंग विथाउट बर्डन नाम की रिपोर्ट बनाई, यह रिपोर्ट शिक्षा के क्षेत्र में बेहद प्रासंगिक है। पर दुर्भाग्य ये रहा कि उनकी सिफारिशों को ढंग से लागू नहीं किया गया।
लोकतंत्रिक नजरिया
आम तौर पर लोग अपने सामाजिक और राजनीतिक दायरे में लोकतांत्रिक होते हैं लेकिन निजी दायरे में डेमोक्रेटिक नहीं होते। लेकिन प्रोफेसर यशपाल अपने निजी दायरे में भी ऐसे ही थे। वे अपने विद्यार्थियों के साथ, अपने घर के अंदर हर जगह डेमोक्रेटिक थे.
वे चाहते थे कि शिक्षा में भी लोकतांत्रिक चरित्र को बढ़ावा मिले।उन्होंने ये बताया कि हमें साइंस क्यों पढ़ना चाहिए। वे कहते थे कि साइंस हमारी ज़िंदगी का पर्सपेक्टिव देती है।प्रोफ़ेसर यशपाल के बारे में सबसे बड़ी बात ये है कि वे छोटे से छोटे बच्चे से भी जब साइंस के बारे में बात करते थे तो उसके स्तर पर आकर करते थे।
जेएनयू व यूजीसी के प्रमुख रहे
वर्ष 2007 से 2012 तक प्रोफेसर यशपाल जवाहर लाल विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर रहे। पाल ने यूजीसी के मुखिया के तौर पर भी काम किया है।
कई पुरस्कार मिले
विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए 2009 में यूनेस्को ने प्रोफेसर यशपाल को कलिंग पुरस्कार से सम्मानित किया।
भारत सरकार ने 1976 में पद्म भूषण और 2013 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया।

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