C V Raman

आज महान वैज्ञानिक सीवी रमन की पुण्यतिथि  है। यह अच्छा मौका है जब हम उनके शानदार योगदान को याद कर सकते हैं। प्रकाश के क्षेत्र में अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए सर सीवी रमन को वर्ष 1930 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था। वे विज्ञान के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले एशियाई थे। उनका आविष्कार उनके नाम पर ही रमन प्रभाव के नाम से जाना जाता है। रमन प्रभाव का उपयोग आज भी वैज्ञानिक क्षेत्रों में किया जा रहा है। जब भारत से अंतरिक्ष मिशन चंद्रयान ने चांद पर पानी होने की घोषणा की तो इसके पीछे भी रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी का ही कमाल था।
फोरेंसिक साइंस में भी रमन प्रभाव काफी उपयोगी साबित हो रहा है. अब यह पता लगाना आसान हो गया है कि कौन-सी घटना कब और कैसे हुई थी।
सीवी रमन ने जिस दौर में अपनी खोज की थी उस समय काफी बड़े और पुराने किस्म के यंत्र हुआ करते थे। रमन ने रमन प्रभाव की खोज इन्हीं यंत्रों की मदद से की थी। आज रमन प्रभाव ने ही तकनीक को पूरी तरह बदल दिया है. अब हर क्षेत्र के वैज्ञानिक रमन प्रभाव के सहारे कई तरह के प्रयोग कर रहे हैं।
एक शिक्षार्थी के रूप में भी रमन ने कई महत्वपूर्ण कार्य किए थे। वर्ष 1906 में रमन का प्रकाश विवर्तन (डिफ्रेक्शन) पर पहला शोध पत्र लंदन की फिलोसोफिकल पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
कलकत्ता विश्वविद्यालय में फिजिक्स के प्रोफेसर बने
ब्रिटिश शासन के दौर में कालेज के बाद रमन ने भारत सरकार के वित्त विभाग की एक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। इसमें वे प्रथम आए और फिर उन्हें जून 1907 में असिस्टेंट एकाउटेंट जनरल बनाकर कलकत्ता भेज दिया गया।1917 में पहली बार कलकत्ता विश्वविद्यालय में फिजिक्स के प्रोफेसर बने।वर्ष 1921 में विश्वविद्यालयों की कांग्रेस में रमन भारत के प्रतिनिधि बनकर ऑक्सफोर्ड गए। जब रमन जहाज से स्वदेश लौट रहे थे तो उन्होंने भूमध्य सागर के जल का अनोखा नीला व दूधियापन देखा। इसे देखकर उन्हें बड़ा अचरज हुआ। कलकत्ता विश्वविद्यालय पहुंचकर उन्होंने निर्जीव वस्तुओं में प्रकाश के बिखरने का नियमित अध्ययन शुरू किया। लगभग सात वर्ष बाद रमन अपनी उस खोज पर पहुंचे, जिसे ‘रमन प्रभाव’ के नाम से जाना जाता है। रमन ने 29 फरवरी, 1928 को रमन प्रभाव की खोज की घोषणा की थी।यही कारण है कि इस दिन को भारत में प्रत्येक वर्ष ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
89 वर्षों में सिर्फ एक नोबेल
अंत में एक सवाल रमन को 1930 में नोबेल पुरस्कार मिला था इस बात को 88 वर्ष बीत गए हैं। इतने लंबे अर्से में एक भी भारतीय वैज्ञानिक प्रतिभा सामने नहीं आई जो नोबेल जीत सके। यह हमारी पूरी शिक्षा व्ववस्था पर सवाल खड़ा करता है। 125 करोड़ की दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी और सिर्फ एक नाबेल यह सचमुच विडंबना ही है।
स्टीव बोले भारतीय इनोवेटिव नहीं
इसी तथ्य की तरफ एपल के सह.संस्थापक स्टीव वोज्नियाक ने भी इशारा किया था जब वो कह रहे थे कि भारतीय क्रिएटिव नहीं होते। यहां के लोगों का एक ही उद्देश्य होता है कि वे अच्छी पढ़ाई कर लें और इसके दम पर अच्छी नौकरी पा लें। इन सब के बीच क्रिएटिविटी और इनोवेशन के लिए जगह ही नहीं बचती। यही वजह है कि भारत में गुगल, एपल व फेसबुक जैसी बड़ी कंपनी नहीं हैं। स्टीव ने कड़़वी सच्चाई बयां की है। ये तीखी मिर्ची की.तरह लगती है। एक तरह से ये भारतीय वैज्ञानिकों को खुली चुनौती है कि अगर स्टीव को गलत साबित करना है तो जल्दी ही कम से कम एक नोबेल
तो जीत कर दिखाएं।
वैसे भी जो योग्य व्यक्ति होते हैंं वो विदेशों खासकर अमेरिका चले जाते हैं।

You may also like...

%d bloggers like this: