अमोल पालेकर

अमोल पालेकर शायद हिंद सिनेमा के पहले ऐसे हीरो थे जो आम चेहरे मोहरे के होने के साथ साथ हमेशा एक आम आदमी का ही किरदार निभाते थे। उन्होंने किसी फिल्म में मारधाड़ वाले हीरो की भूमिका अदा की हो ऐसा मुझे ध्यान नहीं आता। वे एक ऐसे हीरो थे जिनकी छवि एक सीधे साधे व्यक्ति की होती थी। फिल्म में उनके रोल और शैली एक आम आदमी की होती थी जिसकी अपनी कमियां, मजबूरियां और सपने होते थे। शायद ही किसी फिल्म में अमोल ने एक्शन या थ्रिलर रोल किया हो। इसलिए आम आदमी को उनमें अपना अक्श नजर
आता था और आम और संवेदनशील दर्शक खुद को उनसे जुड़ा महसूस करता था। यही बात अमोल पालेकर को चमक दमक वाले अभिनेताओं की भीड़ में भी एक खास पहचान बनाने में कामयाब बनाती है। खासकर ऐसे दौर में जब एंग्रीयंगमैन अमिताभ बच्चन और रोमांटिक हीरो राजेश खन्ना अपने पूरे रंग में ऐसे वक्त में अपनी छाप छोड़ना अमोल पालेकर की अभिनय. प्रतिभा का कमाल माना जाना चाहिए।
अमोल की फिल्मों की कहानियां उस ज़माने की ज्यादातर फिल्मों से हटकर होती थी। उनके अभिनय में एक ताजगी, सादापन और वास्तविकता नज़र आती थी, इसीलिए उनकी गोलमाल, बातों-बातों में जैसी फिल्में कई बार देखने के बाद आज भी अच्छी लगती हैं।
जहाँ लगभग सभी बड़े हीरो की फिल्मे उनके नाम से ही हिट हो जाया करती थीं, पर अमोल की फिल्में अपने खास कहानी, एक्टिंग और निर्देशन के लिए जानी जाती थी. अमोल पालेकर की ज्यादातर फिल्में Box Office पर धीमी शुरुआत होने के बाद धीरे-धीरे सुपरहिट हो जाया करती थी।


ऐसे आए फिल्मों में
ऐसा नहीं है कि अमोल हमेशा से हीरो ही बनना चाहते थे। उनका पहला प्यार तो पेंटिंग्स बनाना था. अमोल पालेकर ने Sir JJ School of Arts, Mumbai से फाइन आर्ट्स में ग्रेजुएशन किया था और उनकी पेंटिंग्स की कई प्रदर्शनियाँ भी हुई थी. साथ ही अमोल Bank of India में Job भी करते थे। इसी दौरान
अपनी महिला मित्र थिएटर आर्टिस्ट चित्रा साथ में थियेटर जाने लगे और साथ में रिहर्सल करने लगे।
इसी दौरान उनका रुझान थिएटर की तरफ हुआ और वह प्रसिद्ध रंगकर्मी सत्यदेव दुबे के निर्देशन में मराठी नाटकों में अभिनय करने लगे.।
इसी दौर में डायरेक्टर बासु चटर्जी ने उन्हें एक फिल्म के लिए अप्रोच किया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया। बासु चटर्जी ने हिम्मत नहीं हारी और अगली फिल्म के लिए फिर से अमोल के पास पहुंचे। आखिरकार अमोल ने हां कर दी। अमोल को एक्टिंग में जाने के लिए प्रेरित किया।
रजनीगंधा से किया फिल्मी सफर शुरू
बॉलीवुड में उनकी पहली फिल्म ‘रजनीगंधा’ सन 1974 में आई।दिल्ली में रहने वाली दीपा (विद्या सिन्हा ) संजय से प्रेम करती है और दोनों की शादी होने वाली है. संजय (अमोल पालेकर ) एक हंसमुख, मस्त, बेफिक्र टाइप का लड़का है जोकि बड़ा लापरवाह भी है. एक इंटरव्यू के सिलसिले में दीपा को मुंबई जाना पड़ता है जहाँ उसकी मुलाकात नवीन (दिनेश ठाकुर ) से होती है।
नवीन और दीपा कॉलेज के दिनों में एक दूसरे से प्रेम करते थे पर झगड़े और मनमुटाव की वजह से अलग हो जाते हैं. नवीन काफी बदल चुका है और स्वभाव में संजय से एकदम अलग जिम्मेदार, गंभीर है. मुंबई में रहने के दौरान वह दीपा की काफी मदद करता है और उसका काफी ख्याल रखता है। इस सब से दीपा नवीन की ओर पुनः आकर्षित होने लगती है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार मन्नू भंडारी की कहानी पर.बनी
रजनीगंधा फिल्म को सन 1975 में बेस्ट फिल्म का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था। इस फिल्म में योगेश के लिखे और मुकेश के गाए लाजवाब गीत हैं जैसे कई बार यूं ही देखा है और रजनीगंधा फूल तुम्हारे ।
गोलमाल लाजवाब
एक बेहतरीन कामेडी फिल्म कैसी होनी चाहिए उसका शानदार उदाहरण 1979 में आई अमोल पालेकर की फिल्म ‘गोलमाल’ है। इसमें.रामप्रसाद (अमोल पालेकर ) एक ग्रेजुएट है जोकि नौकरी पाने के लिए अपने बॉस भवानी शंकर (उत्पल दत्त) से बहुत से झूठ बोलता है. इनमे से एक झूठ यह होता है कि उसका एक जुड़वाँ भाई भी है, इससे कई हास्यास्पद परिस्थियाँ पैदा हो जाती है। अमोल और उत्पल दत्त की जोड़ी कमाल का हास्य रचती है दर्शक हंसने पर.मजबूर हो जाते हैं। गोलमाल बॉलीवुड की सबसे सफल कॉमेडी फिल्म्स में आती । इस फिल्म में किशोर कुमार का गाया हुआ मधुर गीत आनेवाला पल.जानेवाला है था जो काफी हिट हुआ था। इस फिल्म का इंपैक्ट इतना था कि वर्षों बाद इसी नाम से गोलमाल सीरीज की कई फिल्में बनाई गई ं।
छोटी से बात –
मुंबई में एक अकाउंटेंट अरुण (अमोल पालेकर ) शर्मीला और सीधा-साधा सा लड़का है जोकि प्रभा (विद्या सिन्हा) नाम की लडकी से प्यार करता है और उसके ही सपने बुनता रहता है. इनकी प्रेमकहानी के बीच नागेश (असरानी) आ जाता है जोकि बड़ा तेज-तर्रार है और प्रभा का सहकर्मी है।निराश, हताश अरुण कर्नल नागेन्द्रनाथ (अशोक कुमार ) से अपने प्यार को जीतने के लिए ट्रेनिंग लेने जाता है और वापस आकर वह किस प्रकार परिस्थितियों को बदलता है।
बातों बातों में
टोनी (अमोल पालेकर )और नैंसी ( टीना मुनीम ) की अक्सर ऑफिस आते-जाते मुलाकात होती रहती है और धीरे धीरे वो एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं. प्यार में छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा होता ही है पर जब टोनी शादी के लिए मना कर देता है तो नैंसी की माँ उसके लिए अन्यत्र रिश्ते देखने लगती है।
रंग-बिरंगी – :
हिंदी के प्रसिद्ध लेखक कमलेश्वर की एक कहानी पर आधारित इस फिल्म के डायरेक्टर थे हृषिकेश मुख़र्जी. अजय शर्मा (अमोल पालेकर ) एक सफल उद्यमी है , पर वह हमेशा काम में खोया रहता है और अपनी पत्नी निर्मला (परवीन बाबी ) पर ध्यान नहीं दे पाता है. अजय का दोस्त (देवेन वर्मा ) निर्मला का अकेलापन नोटिस करता है और वह अजय और निर्मला के बीच खोये हुए प्यार को जगाने के लिए एक मजेदार प्लान बनाता है. फिल्म के अन्य मुख्य पात्र हैं, अजय की सेक्रेटरी (दीप्ति नवल ) और उसका बॉयफ्रेंड (फारूख शेख़)।
चित्तचोर का दिल चुराने वाला प्रेमी
अमोल पालेकर की एक और उल्लेखनीय फिल्म चित्तचोर है। यह एक प्यारी सी और एकदम साधारण प्रेम कहानी है। अमोल पालेकर और जरीना बहाव की जोड़ी जमी है। अमोल सहज सरल प्रेमी की भूमिका में हैं। इस फिल्म.में येशुदास के कई लाजवाब गीत हैं जैसे गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा, जब दीप जले आना जब शाम ढले जाना और तू जो मेरे सुर में सुर मिला दे।
नरम गरम –
गाँव में रहने वाली कुसुम (स्वरुप संपत) और रामप्रसाद (अमोल पालेकर ) एक दूसरे से प्यार करते हैं पर कुसम के चाहने वालों में गजानन बाबू और बबुआ (शत्रुघ्न सिन्हा ) भी है. कहानी का हीरो ‘रामप्रसाद’ किस प्रकार लाख मुश्किलों के बावजूद अपनी प्रेमिका को पाने में सफल होता है। हृषिकेश मुख़र्जी की इस फिल्म के अन्य कलाकार थे, ए. के. हंगल और उत्पल दत्त।

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