Diego Maradona

मैं जिस जेनरेशन का हूं उसमें भारत के युवाओं में राष्ट्रीय खेल हॉकी की जगह क्रिकेट का जुनून चढ़ चुका था। खासकर कपिल देव के नेतृत्व में जब भारतीय क्रिकेट टीम ने प्रूडेंशियल वर्ल्ड कप जीता तो उसके बाद से क्रिकेट बहुत तेजी से शहरों से आगे बढ़ कर गांवों में भी अपनी पैठ बनाने लगा था। 1984 में रांची में टेलीविजन का प्रसारण शुरू हुआ था। वहीं 1986 में मेक्सिको में फीफा वर्ल्ड कप शुरू हुआ। यह पहला विश्व कप था जो लाइव देखा था। मैचों का प्रसारण रात 11 बजे के बाद ही हो रहा था तो अलार्म लगा कर सो जाता था और देर रात तक मैच देखे थे। अर्जेंटीना के खिलाड़ी डियागो माराडोना को भी पहली बार खेलते देखा। छोटे से कद का माराडोना पहली नजर में तो ध्यान नहीं खिंचता था लेकिन जब उसका खेल देखा तो उसकी फुर्ती और मेजर ध्यानचंद की तरह ही बॉल को किसी जादूगर की तरह जब पैरों से चिपका कर चलता तो उससे बॉल छिनने में विरोधी टीम के खिलाड़ियों को काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। इंग्लैंड के खिलाफ माराडोना के दोनों गोल हैरत में डालने वाले थे। एक हैंडस आफ गॉड को पकड़ना वाकई मुश्किल था। दूसरे गोल को तो फीफा ने सदी के श्रेष्ठ गोल में शामिल किया था। माराडोना ने एक तरह से अपने अर्जेन्टीना को विश्व चैम्पियन बना दिया था। इसी विश्व से मुझे भी फुटबॉल का चस्का लगा। लीग मैच तो नहीं देखता था लेकिन विश्व कप के मैच जरूर देखा करता था। 1990 के विश्व कप फाइनल में अर्जेंटीना की हार पर माराडोना का रोना भी याद आ रहा है। इसके अलावा वो अन्य विश्व कप मैचों में भी अपनी टीम का हौसला बढ़ाने के लिए स्टेडियम में मौजूद रहते थे। नशाखोरी में उसकी गिरफ्तारी बुरी लगी थी।
खैर पेले को खेलते नहीं देख पाया था इसलिए माराडोना ही मेरे पहले फेवरेट फुटबॉल खिलाड़ी थे।

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