डर का बाजार

क्या वाकई 1,00,000 लाख लोग सिर्फ कोरोना की वजह से मरे हैं।

मीडिया में इस बात को लेकर हल्ला-गुल्ला मच रहा है कि भारत में एक लाख लोग लोग कोरोना की वजह से मर गए हैं। आप जरा ध्यान से सोचे की क्या वाकई ऐसा है? ये एक लाख लोगों की मौत की बड़ी संख्या कहीं लोगों को भ्रमित और भयभीत कर हव्वा खड़ा करने का कोई बड़ा खेल तो नहीं है। बड़ी फार्मा, वैक्सीन बनाने वाली, सैनिटाइजर बनाने वाली कंपनियां निजी अस्पताल और हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां चांदी काट रही हैं। वे इस आपदा को भी फायदे के अवसर में तब्दील कर रही हैं। इस पर पता नहीं लोगों का ध्यान क्यों नहीं जा रहा है।

जो व्यक्ति पहले से ही कई या कुछ गंभीर बीमारियों जैसे कैंसर, हाइपर टेंशन, किडनी, दमा, टीबी आदि से पीड़ित हैं वे अगर कोरोना संक्रमित पाए जाते हैं तो उनकी मौत को कोरोना से हुई मौत बताया जा रहा है। जबकि हर मौत की स्पेसिफिक वजह बताई जानी चाहिए।

मेरा एक सवाल है क्या देश में कोरोना को छोड़कर अन्य बीमारियों की वजह से होने वाली मौतें एकदम से बंद हो गई हैं? सारे के सारे लोगों को कोरोना का दानव ही मौत के मुंह में धकेल रहा है। जरा ध्यान से देखेंगे तो अपने देश में हर साल अलग अलग बीमारियों से होनेवाली मौतों का आंकड़ा बहुत बड़ा है। वर्ष 2016 में कैंसर से 7,36,000 लोगों की मौत हुई थी।

वहीं देश में हर 33 सेकेंड में हार्ट अटैक की वजह से एक आदमी काल के गाल में समा जाता है।

पिछले छह महीने से कोरोना को लेकर इतना हाइप क्रिएट किया गया है कि लगता है कि यह दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी है जबकि ऐसा कतई नहीं है। यह सबसे खतरनाक नहीं लेकिन तेजी से संक्रमित होने वाली बीमारी जरूर है। कोरोना के इस शोर शराबे में अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों का इलाज ढंग से नहीं हो पा रहा है। इन मरीजों की मौत लगता है ना तो सरकार के लिए और ना ही अस्पतालों और मीडिया के लिए कोई महत्व रखती है।

रिकवरी रेट भी अधिक है

दूसरी तरफ यह भी देखना चाहिए कि देश में 65 लाख कोरोना संक्रमितों में से 55 लाख लोगों कोरोना को मात देकर स्वस्थ हो चुके हैं।   इस अॉकड़े को थोड़ा ध्यान से देखने और विश्लेषण करेंगे तो कोरोना का भय बहुत हद तक कम किया जा सकता है।

मैं आधा दर्जन से अधिक लोगों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं जिन्होंने बिना किसी अस्पताल में जाए कोरोना को अपने घर पर ही रह कर मात दी है। बस इन्होंने डॉक्टर द्वारा दी गई दवाएं ली थीं। इनकी बीमारी के दौरान इनसे निरंतर बात की थी इनमें से एक को छोड़कर बाकी सभी लोगों को कोई खास परेशानी नहीं हुई थी। इसलिए कोरोना कोई दैत्य नहीं है जो एकदम से किसी एकदम स्वस्थ व्यक्ति की जान ले लेगा। यह उन्हीं लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक है जिनको पहले से कोई गंभीर बीमारियां हैं जैसे हार्ट की, डायबिटीज, किडनी या फेफड़े आदि की। कोरोना इन बीमारियों को और गंभीर बना देता है।

आंकड़े भी इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं। जिन भी लोगों की मौत हुई है उन्हें कोई ना कोई गंभीर बीमारी कोरोना का संक्रमण होने से पहले से थी। झारखंड में कोरोना की वजह से जितने लोगों की मौत बताई गई है उनमें 20  साल तक के सिर्फ 7  लोग मरे हैं। 21 से 40 तक के 84 तथा शेष लोग 40 से अधिक उम्र के थे जिन्हें पहले से ही अन्य बीमारियां थीं।

अन्य बीमारियों से हुई मौतों को कोरोना में ना जोड़े

झारखंड की बात करें तो जब पिछले महीने जब कुल 585 लोगों की मौत बताई थी। इनमें से सिर्फ 177 लोगों की मौत फेफड़े की बीमारी और सांस लेने में दिक्कत की वजह से हुई है। अगर वास्तव में कोरोना की वजह से मौत कही जाए तो वो 177 लोगों की ही है। इसके अलावा 131 लोगों की मौत हार्ट अटैक से, 78  की हाइपर टेंशन से, 50 की किडनी संबंधी बीमारी से 45  की डायबिटीज से,  31 की निमोनिया तथा इसी तरह कैंसर और ब्रेन हमरेज सहित अन्य बीमारियों से बाकी लोगों की मौत हुई है। मेरा सवाल यह है कि इन बीमारियों से मौत को भी कोरोना से हुई मौत में क्यों जोड़ा जा रहा है। इन मरीजों की मौत जिन गंभीर बीमारियों की वजह से हुई है उन्हें उसी अलग कैटेगरी में दिखाया जाना चाहिए।

कोरोना कितना खतरनाक है

ऐसा नहीं है कि कोरोना को एकदम हल्के में लेकर इसे पूरी तरह अनदेखा किया जा सकता है। यह इस लिहाज से खतरनाक है कि इसका संक्रमण बहुत तेजी से होता है। यह छुआछूत की बीमारी है। इसलिए जो ऐहतियात बताए गए हैं उनका यथासंभव पालन किजिए लेकिन इतना भी मत डरिए की घर में ही कैद हो जाएं किसी से मिलना जुलना एकदम बंद कर दें।

कोरोना फेफड़े के लिए ज्यादा खतरनाक है एक रिपोर्ट आज के अखबार में पढ़ी कि 25  साल तक सिगरेट पीने से फेफड़े को जितना नुकसान होता है उतना ही नुकसान कोरोना एक महीने के संक्रमण में कर देता है। इसलिए सावधानी तो बरतें पर भयभीत ना हों कोरोना कैंसर या एडस जैसी गंभीर बीमारियों से कम खतरनाक है लेकिन यह संक्रामक अधिक है यह तथ्य समझने की जरूरत है। इसको लेकर वरीय चिकित्सकों को जागरूकता अभियान चलाना चाहिए और लोगों का भय कम करना चाहिए।

कोरोना के कारण लागू किए गए लॉकडाउन की वजह से देश के विकास का पहिया लगभग ठहर सा गया है। हजारों कारखाने बंद हो गए हैं। लाखों लोगों का व्यापार व व्यवसाय चौपट हो गया है। लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं। कोरोना से कहीं ज्यादा नुकसान उसके साइड इफेक्ट की वजहों से हो रहा है लेकिन मीडिया में इसको लेकर संजीदगी नहीं दिखती है। खासकर टीवी न्यूज चैनलों के लिए तो यै कोई इश्यू नहीं है। उनके लिए तो सुशांत सिंह राजपूत, रिया चक्रवर्ती, चीन से सीमा पर तनाव या बॉलीवुड में ड्रग्स ही TRP बूस्टर हैं। खैर प्रिंट मीडिया को भी इन सवालों को उठाना चाहिए था उसमें वो नाकाम रहा है।

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