अंतिम नमन
काल से क्रूरतम ये कथानक लिखा
दर्द सीने में फिर रह गया अनकहा
आंख युं डबडबा कर रोने लगी
पीर गहरी अधिक और होने लगी
साध जीवन की कितनी अधूरी रही
परिजनों से परबतों सी व्यथाएं सही
बेटियों के अत्तर स्वर ने जो पीड़ा कही
अनवरत आँसुओं की फिर धारा बही
पुत्र कितना बड़ा युं अचानक दिखा
काल से क्रूरतम ये कथानक लिखा
काल की गति अटल है, हमें भान है
मृत्यु शाश्वत है, इसका भी संज्ञान है
कौन नश्वर जगत में रहा है सदा
किन्तु ऐसे भी जाना कहाँ था वदा?
तुम यकायक गए, बिन पुकारे गए
दोस्त जिसका तुम पूरा ही संसार थे
संगिनी की सुख स्वप्न सारे गए
कल एक कुसुमित चमन था जो आंगन
वही आज उजड़ा वियावान दिखा
काल से क्रूरतम ये कथानक लिखा
शब्द भी पीर को कह नही पाएंगे
शोक संतप्त हम सब चले जाएंगे
किन्तु जब भी कहानी सत्तासी की होगी
ये चेहरे बहुत रह रह कर याद आएंगे
साथियों ये नमन है, अंतिम नमन
शब्द है ये समर्पित , श्रद्धा सुमन
दिव्य तुम हो गए पुरातन सखा
काल से क्रूरतम ये कथानक लिखा
दर्द सीने में फिर रह गया अनकहा
______देवेन्द्र सिंह
सहायक कमाण्डेन्ट
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